-:।। देवता किसे कहे ।।:-
वहीं देवता जो जग को कुछ देता हैं
सच्चा सेवक ही निर्बल की सेवा करता हैं
मानव हो कि प्राणी जन को गले लगाओ
इतना बांटो प्यार की सबकी प्यास बुझाओ
कितना हैं, दैनिया देह इतिहास बेचारा
किसने हैं अपने यौवन में किसे बिचारा
यश के पीछे मत दौड़ो यह निर्मम गाथा हैं
आकर्षण ही तो मृर्ग तृष्णा और मादकता हैं
जिसका नशा समस्त चेतना को छलता हैं
पग पग पर जीव चलता और फिसलता हैं