*।। गिरती मानवता ।।*
सुंदर नाम था उसका और करता था एक मिल में मजदूरी ।
दलित था वो शायद ये थी उसकी कमज़ोरी।
मगर क्या ये सच था,
क्या दलित होना ही कमज़ोरी थी ।
तथाकथित उच्च वर्ण का एक व्यक्ति,
जो था तो गुंडा उस क्षेत्र का,
पर वो था उच्च वर्ण का यही एक परदा था उस जलील व्यक्ति पर।
आज उस क्षेत्र में एक चर्चा जोरों पर थी,
कि मारा जायेगा सुंदर,ये बात सबको पता थी।
विडंबना ये कि सुंदर को भी बता दिया था उसने की आज वो उसकी हत्या करेगा ।
और गिरते समाज का ये दृश्य देखिए,
कि उस कस्बे की बाजार इस लिए आज देर से खुलेगी,
क्योंकि आज लोग देखेंगे किसी के मरने का तमाशा।
कितनो ने तो दफ्तर से आधे दिन की छुट्टी ले ली है,
जैसे कोई सुंदर नज़ारा देखेगी आज आंखे उनकी।
वो आया ठीक समय पर भीड़ के बीच से वो जा पहुंचा सुंदर के पास
कई वार पेट में किया और फिर उसी भीड़ से निकल गया वो।
और
ये जनता जो सैकड़ों में थी उसे इस तरह से जगह दे रही थी,
जैसे वो कोई महान कार्य करके जा रहा हो।
इस भेड़ कायर जनता जो एक व्यक्ति को नहीं पकड़ सकती और तमाशबीन बनी रही,
कल इन्हीं में से किसी का अगला नंबर होगा ।
✍️ प्रियंक उपाध्याय