।। कैसे कहूं ।।
? कैसे कहूं ?
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✓√√ तुझ बिन ✓✓
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कैसे कहूं ,
तेरे कातिल नयनों को,
ये झील भी हैं ,
समंदर भी हैं ।
मृग भी हैं,
मंडराते हुए
कुमुदनी पर
भ्रमर सुन्दर भी हैं।
कमल भी हैं।
किसी कवि की
मनमोहक सी गजल भी है।
कैसे कहूं ।
इसके उठते नशा में
डूबते उतराते डगमगाते
मधुशाला के तरफ
बहके आशिक के
लगते कदम भी हैं ।
इन चक्षु में,
हजारों रति की
आभा का दम भी है।
डूब जाना ,
इन नशीले प्यालों में ,
कुछ पल भी है।
सदा के लिए
ऐसा अपना
अमल भी है ।
मनमोहक सी
सुमधुर सुरीली
गजल भी है।
कैसे कहूं
तू कड़कती ठंड की
आग भी है ।
निखरे धरा पर
चांदनी की रूआब भी है ।
मखमल सी नाजुक ,
फूलों सा कोमल
अपने चकहकते सुबह का
रोशन आब भी है ।
शरद की मार से
ठिठुरन भरे रग-रग में
खोए खोए
अंदर ही अंदर
सजा दे रोम-रोम को
वो आफताब भी है ।
सजते सजाते रहे
टीम टिम टिमटिमाते रहे
तारे हों घेरे
वो सुनहरा
महताब भी है।
कैसे कहूं ,
कैसे कहूं,
तुझ बिन हम
कैसे कैसे सजाते
ख्वाब भी हैं ।
झरने से झरते
मन के मनोरम स्वप्न
स्वच्छ निर्मल निर्विकार ,
गिरते नीर के दाब भी हैं ।
हम मिले कभी
भूले कहां ,
कैसे कहूं।
कैसे कहूं
गैर की बाहों में ,
झूले कहां ।
कानों की अपनी
स्थित है ,
चहलकदमी से तेरे,
बजते संगीत उसमें
दृग मग में झुकते
पा दरस तेरे
यही बारम्बार
इनायत पाने को ,
तेरा आदाब भी हैं ।
ख्वाब भी हैं ।
आब भी हैं।
✍️शिवपूजन यादव ‘सहज’।