।। कवि मनमानी ।। (हास्य व्यंग्य)
कवियों की वाणी तो निराली हो गयी
कहीं गोरी तो कहीं काली हो गयी ।।1।।
कहीं प्रेम में मतवाली हो गयी
तो कहीं हास्य की हरियाली हो गयी ।।2।।
कहीं वीर और श्रृंगार निराली हो गयी
कहीं अलंकार और छंद खाली हो गयी ।।3।।
स्वछन्द कवियों की घरवाली हो गयी
कविता तो कवि की रहमवाली हो गयी ।।4।।
यह तो कवियों की मनमानी हो गयी
कवियों की वाणी तो निराली हो गयी ।।5।।
रचनाकार
संजय कुमार स्नेही, रामगढ़, निहोरगंज आजमगढ़ उत्तर प्रदेश
स्वरचित, मौलिक अप्रकाशित रचना
मोबाइल नंबर 9984696598