।।।गज़ल।।।
खिली-खिली सी सुबह का ख़ुमार है कि नहीं।
ज़रा-ज़रा ही सही इंतज़ार है कि नहीं।।
कभी तन्हाइयों में पूछ तेरे दिल से ज़रा,
मेरे लिए भी तेरे दिल में प्यार है कि नहीं।
तेरे यकीन पर है मैंने ठुकराई दुनिया,
तेरे दिल को भी मुझपे ऐतबार है कि नहीं।
मेरे इश्क़ को मैं खुल के कहता हूँ जमाने से,
तुझे भी अपनी मोहब्बत पे नाज है कि नहीं।
मैं तो हर पल यही सोचूँ कि लगा लूँ तुझको गले,
तेरी बाहें भी मोहब्बत का हार हैं कि नहीं।
ज़रा-ज़रा ही सही इंतज़ार है कि नहीं।