।।दिसम्बर का ज़बाब भी सुनो अब जनाब।।
।।दिसम्बर का ज़बाब भी सुनो अब जनाब।।
तुम बढ़े जा रहे हम परे जा रहे
वक़्त की कश्तियों में चले जा रहे।
तुम किनारों से अपने रखो वास्ता
लगते मझधार के हम गले जा रहे।।
मैं चला अब सखे जनवरी से मिलो।
हम पुराने हुए तुम नई से मिलो।।
बात होंठो पे जो आ सकी ना कभी।
जाओ रे बात उस अनकही से मिलो।।
जाओ तुम भी वर्ष अब नई से मिलो।
भूल जाओ हमें और सही से मिलो।।