।।कुछ तो कमी रह गई।।
…………कुछ तो कमी रह गई होगी
तुमको लगता है कि तुम हार गये?
बल्कि सच यह है कि सार्थक ,
प्रयास ही नही किया।
एक कलाकार अपनी हर रचना को तब तक मिटाता और बनाता है,
जब तक कि उसे वह रूप न मिल जाये,
जो उसके हृदय को चुभ जाए,
जब ऐसी कोई कृति कलाकार अपनी कला के अंतिम सौंदर्य से निखार के लाता है,
तब वह संतुष्ट होता है।
और ज़माना कहता वाह, क्या बनाया है?
लाज़बाब,,इससे आगे बोलने के लिये उसे शब्द ही न मिलें,
अत: सच्ची तारीफ वही होती है, जिसे व्यान करने के लिए शब्द कम पड़ जाएं,
जो देखे वही अचंभित हो जाये, शब्द हीन हो जाये।
यह है असली कामयाबी और सभी यही चाहते हैं।
मगर , निकम्मे लोग किस्मत को कोसते हैं, अरे! किस्मत धोखा नही देती बल्कि वह अपने आप से वहार नही निकलते हैं,
अर्थात उस दुनिया से खुद को दूर रखते हैं,
जहाँ वह अपने आपका आंकलन कर सकें, खुद को सही शब्दों में और सही मायने में परिभाषित कर सकें।
कमियां हैं, तो सुधार कैसे हो? यह क्षमता खुद को कैद करने से नही आएगी, इसके लिए अपने अंदर की कमजोरी का त्याग करना होग।