फ़ज़ीहत
उस रात मुझे घर के पिछवाड़े केले के पेड़ों के बीच एक साया नजर आया।
कौन है ? आवाज देने पर वह छुपा साया बाहर निकल कर आया।
मैंने पूछा कौन है तू ? इस पर वह साया बोला मैं एक मजदूर की आत्मा हूँ।
मैं कल रात भूख से मर गया था।
परंतु मुझे कोरोना से मृत लावारिस घोषित कर दिया गया था।
सरकार ने तहकीकात बिना मुझे कोरोना से मृत सामूहिक दाह संस्कार का हिस्सा बनाकर मेरे शव का दाह संस्कार कर दिया।
मेरे शव को सम्मान पूर्वक मृत्यु संस्कार से वंचित कर दिया।
इधर उधर शांति की तलाश में भटकता फिर रहा हूं।
गांव में मेरे अपने मेरे गांव लौट आने का इंतजार कर रहे हैं।
गरीबी और लाचारी झेलते हुए मेरे जिंदा होने के भ्रम में जी रहे हैं।
मुझे डर है जब वे हकीकत जान जाएंगे।
टूट कर जिंदा लाश बन कर रह जाएंगे।
मुझसे बेहतर तो मेरे साथी हैं जो अपने गांव पहुंच गए हैं ।
वहां जाकर चंद अपनों से मिल लिए है।
वहां जाकर अगर कोरोना से या भूख से मर भी जाऐंगे।
अपनी अर्थी उठाने के लिए चार कंधे तो ज़रूर पाएंगे।
कम से कम अपनी मौत पर वाजिब इंसानी इज्जत तो पाऐंगे ।
और मुझ जैसी मौत पर फ़ज़ीहत से तो बच पाऐंगे।