फ़ैसला
कौन कहता है,
इंसान भगवान नहीं होता.
बस,
बनना पड़ता है
गढ़ना पड़ता है
स्वयं को-
यह हौंसले की बात है.
क्या यह सत्य नहीं ?
कुछ इंसानों ने मिल,
‘भगवान’ को क़ानूनी मान्यता दी,
और उसी ‘सर्वशक्तिमान’ के मुकदमे के
सुनवाई का हौंसला किया.
कौन सोचता था ?
यही इंसान,
अपने को
अदृश्य, अतृष्ण,
अपने को परिभाषित करेगा.
स्तब्ध विश्व देखता रह गया,
और कुछ इंसानों ने मिल,
उकेर दिया इतिहास के पन्नों पर
राम – रहीम को प्रतिष्ठित करने की
नई इबारत !
एक अद्भुत कलाकृति
जो मौन हो
मुखर होती रहेगी,
यह हौंसला तुम कहाँ से लाए ?
भगवान पर फ़ैसला
तुम कैसे सुनाए ?