फ़ुर्सत के पल
ज़िन्दगी ने ना दिएँ हमें फ़ुर्सत के पल,
ग़र कभी दिए तो वो भी तन्हां गुज़र गएँ,
हम रहें है अकेले ओर वो लोगों से घिरे रहें,
उन पलों में हमनें तो उनका इंतज़ार किया है,
इंतज़ार की इन घड़ियों में आँखों को नम देखा है,
गिरते नहीं है अश्क़ ज़ख़्म को नासूर करते है,
रोता है दिल पर भरी महफ़िल मुस्करातें है,
बनावटी इस मुस्कराहट से ऐ-रब अब थक गया हूँ,
ज़िन्दगी की इस बेक़सी से मैंरा दिल उचट गया है,
कोसता हूँ में ख़ुद को कि क्या मुक़द्दस का लेखा है,
ज़िन्दगी ने ना दिएँ हमें फ़ुर्सत के कुछ पल,
ग़र दिएँ भूल से तो वो भी अब ज़ख्मो का हिस्सा बने हैं।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”