क़ौल ( प्रण )
फ़िरक़ा-परस्ती का जुनून जमाने में इस कदर हावी है,
हैवानियत सर चढ़कर बोल रही इंसानियत पर भारी है ,
बातों ही बातों में इंसाँ दहशतगर्दी और खूँरेज़ी पर
उतर आता है ,
इंसानियत का लिबास ओड़े आकाओं की कठपुतली बना पेश आता है ,
कौमी यक-जहती के माहौल को बिगाड़ने की
कोशिश करने वालों की कमी नहीं है ,
सियासी के फायदे के लिए अवाम को एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़का कर लड़वाने वाले की कमी नहीं है,
तशद्दुत की गाज़ आम आदमी पर ही गिरती है ,
बाक़ी भीड़ सिर्फ तमाशा-बीं होकर रह जाती है,
सियासतदाँ कोरी हमदर्दी जताकर मौके का फायदा उठाने से नही चूकते हैं ,
अपनी तक़रीरों से वाकये के लिए जिम्मेदार सरकार को ठहराने की कोशिश करते रहते हैं,
अभी भी वक्त है इंसानों जाग जाओ ,
इन फ़िरक़ा-परस्ती मंसूबों को जान जाओ,
इन सियासी नापाक़ इरादों को पहचान पाओ,
इससे पहले ये ‘अनासिर अपने मक़सद में कामयाब
हो पाऐं ,
और मुल्क के सुकून भरे माहौल में नफ़रत का ज़हर
घोल पाऐं ,
शक़ो शुबहों के अन्धेरों में डूबने से पहले उठो जागो,
बाहम गुफ़्तगू से मस’अले हल करने की पहल हो,
दहशतगर्दी , जुल्मो तश़द्दुत जड़ से खत्म करने का कौल लो,
इससे पहले ये हैवानी सोच इंसानियत को मिटाकर रख दे,
इंसाँ में छुपी इस हैवानियत को मिटाकर दम लो,