फ़रेबी दुनिया
इस फ़रेबी दुनियां में न जाने,
कितने समझदार बैठे हैं।
खता माफ़ी के क़ाबिल नहीं,
कई ऐसे गुनेहगार बैठे हैं।
छूना हैं तुम्हे बुलंदियों को,
तो क्या हम यूँ बेकार बैठे हैं?
मग़रूर तो हैं हम भी पर,
दोस्ती के तलबगार बैठे हैं।
रिश्तों को तोड़ो,जोड़ो,
कुछ लेकर ये कारोबार बैठे हैं।
न सिखाओ दुनियादारी हमें,
लेकर प्यार बेसुमार बैठे हैं।
तुम भुलने की बात करते हो,
ले लम्हों के यादगार बैठे हैं।
*****@शिल्पी सिंह