ज़ख़्म देने वाले को हमदर्द ही कहते रहे
ज़ख़्म देने वाले को हमदर्द ही कहते रहे
ओढ़ लीं ख़ामोशियाँ हर दर्द यूँ सहते रहे
जो मुझे हासिल नहीं, क्या वो तुम्हारा इश्क़ था
आँसुओं के समन्दर उम्रभर बहते रहे
प्यार कहते हो इसे तुम, दर्द का अहसास है
एक क़ैदी की तरह हम क़ैद में रहते रहे
मक़बरा हूँ इश्क़ का, जज़्बात जिसमें दफ़्न हैं
इक इमारत की तरह ही बारहा ढहते रहे
यार अपने दिल की सुनना कुछ सही था कुछ ग़लत
ज़िन्दगी भर भावनाओं में हमी बहते रहे