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28 Feb 2021 · 1 min read

ज़िल्लत में रहना सीख लिया

जिल्लत में रहना सीख लिया
***********************

रोते -रोते हँसना सीख लिया,
गम में मुस्कराना सीख लिया।

हम मालिक अपनी मर्जी के,
तेरी रजा में रहना सीख लिया।

नभ में घुमंतू स्वतंत्र परिंदे थे,
तेरे दर पर रहना सीख लिया।

शत्रु से पल में भिड़ जाते थे,
भय में रहना है सीख लिया।

निगाहों में निगार तुम्हारी थी,
नजरबंद रहना सीख लिया।

निगारिश में तुझे हम लिखते,
तहरीर में लिखना सीख लिया।

नफ़ासत से कोसों दूर थे हम,
तहबीज से कहना सीख लिया।

तुम मेरी जज्बाती इस्तेदाद थी,
जुर्रात भर में रहना सीख लिया।

सांसों की ताबीश में रहती थीं,
तेरे तपन में रहना सीख लिया।

तौहीन कभी नहीं सह पाते थे,
ज़िल्लत में रहना सीख लिया

मनसीरत त़ौफ़ीक़ कुदरत की,
रिनायत में रहना सीख लिया।
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
321 Views
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