ज़िन्दगी
रोती और बिलखती हुई सी
हो गयी ये ज़िन्दगी।
ख़ुद जीने के लिए तरसती
रह गयी ये ज़िन्दगी
अमन, चैन की तलाश में
खुशियों की आस में सिमट
कर रह गयी ये ज़िन्दगी
बहती हुई कश्ती की डगर सी
बनकर रह गयी ये ज़िन्दगी
नए की तलाश में ख़ुद से ही दूर
होती चली गयी ये ज़िन्दगी
नाजने कितने रंगों को अपने में
समेटते हुए चले गयी ये ज़िन्दगी
कितने ही पन्नो में खुद को
लिखती हुई चले गयी ये ज़िन्दगी।
कितनो की सूरत को मूरत बनती
देख चली गयी ये ज़िन्दगी।
दूसरों की आँखों में
अश्रु देकर चली गयी
ये ज़िन्दगी।
भूपेंद्र रावत
21।07।2017