ज़िन्दगी
एहतियात से हमने गुज़ारी है ज़िन्दगी
जैसे हम पर किसी की उधारी है ज़िन्दगी।
बारहा क़िस्मत ने ऐसे सवाल हम पर दागे
खिलती धुप में जैसे बर्फ़-बारी है ज़िन्दगी।
कैसे धरे इल्ज़ाम ग़ैरों पर कि बिखड़ गए
अर्श से फ़र्श तक खुद उतारी है ज़िन्दगी।
क्यूँ हमें चैन से जीने नहीं देता ये ज़माना
जिसे हम जी रहे है वो हमारी है ज़िन्दगी।
वो जो हर बात पे मरने की बाते करते हैं
सच कहूँ तो उनको भी प्यारी हैं ज़िन्दगी।
हादसे इंतज़ार करते हैं कि हम सो जाए
दानिश-मंद जानते हैं बेदारी है ज़िन्दगी।
-जॉनी अहमद “क़ैस”