“ज़िन्दगी पर किताब लिखूँगा”
इक़ दिन मैं अपनी ज़िन्दगी पर क़िताब लिखूँगा
दिल में उठते हैं कई सवाल उनके जवाब लिखूँगा
इक़ इक़ लम्हा ख़ुशी ग़म का गर्दिशें ख़्वाब लिखूँगा
कुछ पूरे होंगें कुछ रह जायेंगे अधूरे ख़्वाब लिखूँगा
जाने कितनी तकलीफें हँस हँसकर पी गया हूँ मैं
लहू बन गया है अब तेज़ाब, लहू को तेज़ाब लिखूँगा
मुसीबतों को मैं नहीं ढूढ़ता मुसीबतें मुझें ढूढ़ लेती हैं
मेरे हिस्से ना आ सका ख़ुशगवार पल अज़ाब लिखूँगा
इक़ ज़माने से आँखों में पानी ही लिए फ़िरता रहा मैं
वो पानी भी बन गया शराब पानी को शराब लिखूँगा
मैं इक़ फ़साना लिखूँगा ज़िन्दगी का विराना लिखूँगा
मैं क्यूं रहा तन्हा कुछ ना छुपाउँगा हर अस्बाब लिखूँगा
—–अजय “अग्यार