ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा —
ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा —
चलो आज कुछ नया किया जाये
हृदय में हरेक के वृक्ष उगाया जाये
बाहरी वृक्षों की सांसें हुई दूषित हैं
अन्दर शुद्ध सांसों को बोया जाये
चलो आज कुछ नया किया जाये
बाहरी वृक्षों पर कुल्हाड़ियां चल जातीं
कटते वृक्षों की सिसकियां खो जातीं
अन्दर के पर्दानशीं वृक्ष महफू़ज़ हुए
किसी कातिल की निगाहों से बचते
चलो आज कुछ नया किया जाये
हृदय में हरेक के वृक्ष उगाया जाये
हृदय में हरेक के वृक्ष उगाया जाये
अंदर ही अंदर सीने से लिपटते
अन्दर के वृक्ष अब कभी न सूखेंगे
मानस क्षुधा शांत होने से वे फलेंगे
तुम्हें गिला न होगा उन लोगों से
जो बाहरी वृक्षों को काट देते हैं
अपने अन्दर का वृक्ष पलता रहेगा
चलो आज कुछ नया किया जाये
हृदय में हरेक के वृक्ष उगाया जाये
बाहरी वृक्ष बेबस लाचार होते हैं
जब उन पर इंसां के प्रहार होते हैं
सिसकती हैं उनकी डालियां
रुदन करती हैं उनकी पत्तियां
पर इंसां लालच में अंधा हो जाता
इससे आगे उसे कुछ नज़र न आता
थक जाने पर उसी वृक्ष की बची
काया के नीचे ही छांव पाता
ऐसा करके वह बिल्कुल भूल जाता
गर्मी की तपन हर तपन को झेलने वाले
इन वृक्षों का जब वह वजूद मिटा देगा
तो इंसान को ही यह तपन झेलनी होगी
फिर नतीजा जो कुछ भी हो
ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा
ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा