ज़िन्दगी तुम ही इनाम लेकर आए थे
ज़िन्दगी तुम ही इनाम लेकर आए थे
मौत का पैग़ाम भी तुम ही लेकर आए थे
ज़िन्दगी गुज़र रही थी इसी जदोजहद में
विष सरेआम तुम ही पिलाने आए थे
ख़्वाब दोनों ने मिलकर बनाए थे
बाद में तुम ही खूब पछताए थे
तुमने ही साथ छोड़ा था हमसफ़र
सफर में तुम ही गिराने आए थे
वो समुन्द्र का किनारा था
नजाने किस और उतारा था
न कश्ती,न कोई सहारा था
फ़क़्त तेरी राह तकता
खड़ा एक बेचारा था
भूपेंद्र रावत
15।04।2020