ज़िन्दगी की दौड़ में
जिम्मेदारियों के बोझ
तले चलता हूँ
रोज छोटी सी आस लिए
निकल पड़ता हूँ
ज़िन्दगी की दौड़ में
कुछ अपने हैं और कुछ पराए
इस भीड़ भरी दुनिया में
खुद को शामिल किए चलता हूँ ।
हर रोज एक छोटी सी
आस लिए आगे बढ़ता हूँ
कशमकश भरी ज़िन्दगी में
गिरता हूँ,गिरकर सम्भलता हूँ
हाँ स्वयं को बदलता हूँ
समय के अनुसार ढलता हूँ
जीवन की बहती धारा का नाविक
तूफानों से लड़ मंज़िल तक पहुंचता हूँ
रोज छोटी सी आस लिए निकल पड़ता हूँ ।
भूपेंद्र रावत
1।01।2020