ज़िन्दगी का क़ाफ़िला हूँ
ज़िन्दगी का क़ाफ़िला हूँ
मैं अज़ल से चल रहा हूँ
जिस्म माटी जानता हूँ
फ़िर अना में जी रहा हूँ
जबकि पत्थर का बना हूँ
लोग कहते आइना हूँ
मुझमें हैं लम्हों की नदियाँ
मैं समुन्दर वक़्त का हूँ
जो पहुंचता मंज़िलों पर
वो मुसलसल रास्ता हूँ
ग़म ज़माने से मिले जो
उन ग़मों की इक रिदा हूँ
इश्क़ की आतिश में यारों
बारहा मैं भी जला हूँ
देखकर उनकी उड़ानें
मैं बलन्दी पा गया हूँ
दूर भी ‘आनन्द’ का था
पास में ‘आनन्द’ का हूँ
शब्दार्थ:- अज़ल=beginning/eternity/अनादिकाल/वह समय जब सृष्टि की रचना हुई/आदिकाल
– डॉ आनन्द किशोर