ज़िद °°°
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बहुत ज़िद्दी तुम निकले अपने मिज़ाज़ से,
कभी हमें भी समझा होता, इत्मिनान से ….
ना यूँ तकरार होती,ना ऐसे जुदा होते,
कभी जो देख लिया होता, हमे भी प्यार से …
तेरा दिल ऐसा ना था,फिर क्यूँ सख़्त हुए,
मेरे दिल पे हाथ रखते, तो पिघल जाते प्यार से ….
माना लौ पिघला देती है मोम को,
पर रहते तो है दोनों, बुझने तक साथ में ।
©ऋषि सिंह “गूंज”
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