ज़िंदगी
तुमने देखा भी नही ऐ ज़िन्दगी
मैं कैसे यू बिगड़ती गयी खुद को बिगाड़ती गयी
तुमने शिकायत नही की मैं बदहवास होती गयी
और तुमने टोका भी नही ऐ ज़िन्दगी ।
क्या हुआ यू मुझसे तुम नाराज रहने लगी हो
कुछ कहती भी नही में तुमसे खिलवाड़ करती गयी
तुमने शिकायत नही की मैं बदहवास होती गयी
औऱ तुमने मुड़कर देखा भी नही ऐ ज़िन्दगी।
उजालो में कही खोजती कभी अंधेरे में टटोलती तुम्हे
कही मिलकर एक दफा मुझे बताओगी मेरी गलतियां
लेकिन तुमने फिर शिकायत न कि मैं बेवकूफियां करती गयी
अब तो देखो लो मुड़कर मुझे मेरी ऐ ज़िन्दगी