ज़िंदगी भर उनकी निगाहों में रहा जैसे बहती हुई फ़िज़ाओं में रहा
ज़िंदगी भर उनकी निगाहों में रहा
जैसे बहती हुई फ़िज़ाओं में रहा
तलाशता रहा आशियाना दरख्तों में
सुखी हुई टहनी की शाखाओं में रहा
बहती रही कश्ती फ़िज़ाओं में
मैं गश उनकी अदाओं में रहा
तिश्रगी बढ़ती रही पल दर पल
मैं बैठा गेसूओं की इश्तियाक़ में रहा
इश्तियाक़= चाह, इच्छा, लालसा
मर कर भी जिंदा रहे यादों में
ख़ामोश उनके ख़ुमार में रहा
गमगुस्सार थे गम्माज़ वो
गुमगुश्ता उनके प्यार में रहा
डूबा में अक्सर उस जगह
जहाँ आब ना तलाब में रहा
क़लम भी रूठ गयी नदीम से अब
जब साथी क़लम का गिर्दाब में रहा
गुबार बन उड़ गया सब गुमान
जब आवज़हा उनका गैहान में रहा
बिख़र गयी सब बूंदे पानी बनकर
जब जिक्र उनकी बात में रहा
जनाज़ा तो तैयार था हमारे लिए कब से
भूपेंद्र तो बस कब्र की तलाश में रहा
भूपेंद्र रावत
11।09।2017