ज़िंदगी बहुत कम बची है दोस्त !
ज़िंदगी बहुत कम बची है दोस्त !
मगर जान लो ये बात ..
मैं ज़िंदगी के पीछे दौड़ता नहीं
मौत से घबराता नहीं !
ज़िंदगी को ख़ूबसूरत बनाने के लिए
बेशुमार सपने भी देखता हूँ
उन सपनों के लिए मेहनत करता हूँ !
मगर वो सपने मेरे है, मेहनत भी मेरी
किसी पर कोई आरोप या ईर्ष्या नहीं
जो साथ आते है, उन्हें स्वीकारता हूँ !
कुछ भी न करने से भला मनचाहा कुछ
करके भी जाऊँगा यही तो ठान ली है हमने
आपको हम पसंद हो न हो, ये हो सकता है !
मगर अपना प्यार, स्नेह, वात्सल्य से
जो कुछ छोड़कर जाऊँगा, तब मैं नहीं
मेरे शब्द होंगे, संवाद होंगे और आप भी !
ज़िंदगी बहुत कम बची है दोस्त !
*
|| पंकज त्रिवेदी