ज़िंदगी तो है…
ज़िंदगी तो है पर यहाँ साथ में ही ये गम क्यो है ,
हरपल यहाँ खुश,तो आँख उसकी नम क्यों है।
हार जाता है अक्सर यहाँ सच रहेता तन्हा यूँ
जूठ के ही पाँव में इस तरहा संग दम क्यों है।
जिसने भी यूँ कभी जो यूं निभाई ता-उम्र वफ़ा,
और उससे ही रहेता दूर उसका सनम क्यों है।
भूल जाते है अगर वो ही हमसे दूर जा कर,
तो यहाँ गमे -इंतज़ार में ही खड़े हम क्यों है।
सोच तो वो भी कुछ अलग रहा है हम से,
दिल फिर उसी शख्स का हूँआ हमदम क्यों है।
– मनीषा जोबन देसाई