ज़िंदगी चार पल को न ठहरी कभी, रेत सी हर घड़ी ये फिसलती रही !*********************
ज़िंदगी चार पल को न ठहरी कभी,
रेत सी हर घड़ी ये फिसलती रही !*******************************
जब अकेले में दो पल को बैठा कभी,
याद मांझी की बस हमको छलती रही
साल दर साल जब हमने देखा पलट,
तो ये नश्वर जगत,सैकड़ो से ये मिलती बिछुड़ती रही
ज़िंदगी चार पल को न ठहरी कभी,
रेत सी हर घड़ी ये फिसलती रही !*****************************
नाम चलने का जीवन सभी ने कहा,
ठहरने की इजाजत किसी को नहीं
घाव गहरे सही, हम न ठहरे सही
हम भी चलते रहे ये भी चलती रही
ज़िंदगी चार पल को न ठहरी कभी,
रेत सी हर घड़ी ये फिसलती रही !****************************
वक़्त रहजन है हमको कोई गम नहीं
कारवां रहवरों का सतत साथ है,
जब तलाक श्वास है, मन को विश्वास है
रेत की प्यास सी ये मचलती रही
ज़िंदगी चार पल को न ठहरी कभी,
रेत सी हर घड़ी ये फिसलती रही !***************************