ज़वानी पर ग़ज़ल
ग़ज़ल
काफ़िया-आए
रदीफ़- ज़वानी
122 122 122 122
हँसाये जवानी रुलाये ज़वानी।
अजी रंग कितने दिखाए ज़वानी।
मिले मुश्किलें ज़िंदगी में हमेशा
कि हर मोड़ पर आजमाए ज़वानी।
नही इश्क़ में नींद आशिक़ को आये
उसे रात भर फिर जगाए ज़वानी।
कमाते जो दौलत हैं परदेश जाकर
वो घरद्वार उनका छुड़ाए ज़वानी।
खड़े देश सीमा पे सैनिक हमारे
सदा देश को वो बचाए जवानी।
बुढ़ापे में मानव यही सोंचता है
ख़ुदा लौटकर फिर से आये ज़वानी।
अभिनव मिश्र अदम्य
शाहजहाँपुर, उ.प्र.