ज़रा सा सब्र रखना था..
कभी किसी ज़माने,
बड़ी आसानी से मिला करता था,
लोगों के दिलों में और,
जेबों के किनारे,
वो ‘सब्र’ अक्सर दिखा करता था,
पैसे कमाने और परिवार चलाने में,
प्यार बढ़ाने और रिश्ते निभाने में,
ये सब्र अक्सर काम आता था,
बाबू जी ने भी मुझे,
सिखाने की कोशिश करी थी,
सब्र को कमाने और बचाने की,
हर तरकीब हमें दी थी,
पर इस वक़्त और आज के दौर ने,
मजबूरी और पैसों की होड़ ने,
दिलों को छोटा और,
जेबों में छेद कर दिए हैं,
परिवारों में नफरत और,
रिश्तों में मतभेद कर दिए हैं,
बात मान ली होती बाबूजी की,
अपनों का कुछ तो ख्याल रखा होता,
सब रिश्ते,परिवार बिखरे ना होते,
अगर ज़रा सा सब्र रखा होता ।
©ऋषि सिंह “गूंज” ◆◆