{{{ ज़मी कही और रखता है }}}
मोहब्बत जिससे करते है ,वही अक्सर हमसे खफ़ा रहता हैं
जाने कैसा यार है मेरा जो दूसरों पे यक़ी रखता हैं
मेरे इश्क़ के मका में उसके ख्वाबो की छत है,,
मका तो आज भी है लेकिन वो ज़मी कही और रखता है
मुझसे कभी खुश नही हुई ताबीर उसकी,,
मुझसे न मिले पर बटुए में मेरी तस्वीर रखता है,,
गर रुलाना ही है तो मोहब्बत से रुला,,
क्यों दिल दुखने को मेरा ,गैरो से तअल्लुक रखता है,,
अपने रिस्ते की डोर कच्ची नही बांधी मैंने,,
वो खफ़ा ज़रूर है, मगर मेरा इश्क़ ख़ुदा पे यक़ी रखता है,,
है अगर मोहब्बत तुझे भी तो स्वीकारता क्यों नही
क्यों इस मोहब्बत को पर्दे में छुपा के रखता है,,