#ग़ज़ल-27
सपना बनके आँखों में पलते हो
दीपक बनके इस दिल में जलते हो/1
लगते हो तुम तो सावन के जैसे
बातों की बारिश ऐसी करते हो/2
कैसे ना हम हो जाएँ दीवाने
फूलों के जैसे मिलके खिलते हो/3
रिश्ते-नाते तुमसे सीखे कोई
ख़ुशबू के जैसे दिल में ढ़लते हो/4
मैं कर सकता हूँ वो तुम भी करना
ज़ज्बा ये ख़ुद-सा भरके चलते हो/5
औरों से कुछ तो हो न्यारे-न्यारे
वो ख़ुशियाँ चाहें तुम ग़म छलते हो/6
आँखों-आँखों में सब बातें कहते
होठों को ख़ामोशी से सिलते हो/7
तेरा होने को कहतीं वो बातें
क़समें-वादों से तुम ना टलते हो/8
ख़ुद को ही भूले जाते हैं ‘प्रीतम’
ज़न्नत मिलती है जब तुम मिलते हो/9
-आर.एस.’प्रीतम’
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