ज़ख्म
हँसते ज़ख्मो पर लेकिन लोग सीने नहीं देते।
ये ज़िन्दगी अपनी हैं फ़िर भी जीने नहीं देते।
बदलतें दौर के क़िस्से क्या क्या बयाँ करूँ,,
अमृत पिलूँ कैसे ये ज़हर पीने नहीं देते।।
✒#शिल्पी सिंह
हँसते ज़ख्मो पर लेकिन लोग सीने नहीं देते।
ये ज़िन्दगी अपनी हैं फ़िर भी जीने नहीं देते।
बदलतें दौर के क़िस्से क्या क्या बयाँ करूँ,,
अमृत पिलूँ कैसे ये ज़हर पीने नहीं देते।।
✒#शिल्पी सिंह