ज़ख्म मेरे तू मुझे आज दिखाता क्या है….
ज़ख्म मेरे तू मुझे आज दिखाता क्या है….
दास्ताँ मेरी मुझे ही तू सुनाता क्या है…
ख्वाब में आके सताना तो ठीक था लेकिन…
ज़िन्दगी मेरी में आकर तू रुलाता क्या है….
मैंने तो यूं ही लिख डाली थी ग़ज़ल तुमपे….
बेसबब ही मुझे तू रोज़ सुनाता क्या है…
तेरी पेशानी है चमके, मेरी लकीरें पिटी सी…..
पता है मुझको अंजाम तू, दोहराता क्या है….
बचा है जो भी ले के, निकल जा चुपचाप…
गिरती दीवार पे चरागों को जलाता क्या है….
आँखें कुछ ‘चन्दर’ लब और ही ब्यान करते हैं…
नहीं मिलता है दिल तो हाथ मिलाता क्या है….
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/सी. एम्. शर्मा…