ग़ज़ल
जीभ से जो हुआ, जख़्म भरता नहीं।
दिल हो जब उदास, धीर धरता नहीं।
अवसान की बात,पकड़ो न अभी बस,
सुनहरा अवसर,कभी ठहरता नहीं।
कर्म भारी हमेशा,रहा शब्द से,
शब्द बिसरें भले, कर्म मरता नहीं।
मुल्क से प्यार का, सिलसिला है अलग,
प्यार सच्चा यूँ ही, ओ डरता नहीं।
ज़िन्दगी का सफर,यूँ कठिन है भले, ‘सहज’ चलते रहने,से थकता नहीं।
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@डा०रघुनाथ मिश्र ‘सहज’