ग़ज़ल
उधर अगर लब पर मुस्कान
इधर बसा अन्दर तूफान।
मीत मोम-सा, अजब विलोम
खींचे बनकर खंजर प्रान।
वो छू ले तो हो झंकार
पा जाते हैं पत्थर जान।
देती एक अलौकिक हर्ष
अगर नज़र हो अधर समान।
आज कहे क्या मन की ‘राज’
सिर्फ प्रेम का मंतर ध्यान।
+रमेशराज
उधर अगर लब पर मुस्कान
इधर बसा अन्दर तूफान।
मीत मोम-सा, अजब विलोम
खींचे बनकर खंजर प्रान।
वो छू ले तो हो झंकार
पा जाते हैं पत्थर जान।
देती एक अलौकिक हर्ष
अगर नज़र हो अधर समान।
आज कहे क्या मन की ‘राज’
सिर्फ प्रेम का मंतर ध्यान।
+रमेशराज