ग़ज़ल
दिल बनाया भगवान् ने, और रख दिया सजा के इंसान के अंदर
फिर भी सब से पहले लगती है ठोकर इस मासूम को दिल के अंदर !!
न जाने क्यूं, लगा लेता है अपना दिल , किसी और के दिल के अंदर
फिर अपने आप खुद को समझाता और उलझता है इस संसार के अंदर !!
इस की मासूमियत तो सब से ही ज्यादा निराली है हर एक के अंदर
अपना बना लेने को पल पल न जाने क्या क्या सोचता है दिल के अंदर !!
इतना पास आ जाता है , की दूर होने पर खुद घबराता है अपने अंदर
न सोच जब पूरी होती , तो, चला जाता है, मैखाने में सब से अंदर !!
याद करता, वफ़ा का वास्ता देता, उस अपने प्यारे का बनाने को सिकंदर
पर वो वफ़ा, जब तब्दील हो जाती, किसी बेवफाई का का रूप ले उस के अंदर !!
बर्बाद होने को बस पल पल का इन्तेजार करता ,और ठोकरे खाता ,बन के बंदर
एक दिन मौत पास आ कर उस से पूछती, बोल अब तो चल “ओ” मेरे सिकंदर !!
“अजीत” दिल दिया था रब ने , कुछ कर गुजरने को, तुझे इस जनम के अंदर
पर लगा के दिल को ,किसी और के लिए, बर्बादी का भर गया सारा समंदर !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ