ग़ज़ल
इस जहाँ मे बाँट दे जो कुछ भी तेरे पास है,
हुस्न की रंगीं फजां कल तक रहे या ना रहे॥
उँगलियाँ ग़म की न छोड़ी क्यूंकि मुझको था पता,
ये ख़ुशी का कारवां कल तक रहे या ना रहे॥
इतना इतराओ नही माटी के इस पुतले पे तुम,
ये तुम्हारी दास्तां कल तक रहे या ना रहे॥
दिल में जो आए वो कर लो आज हैं कल क्या पता,
ज़िंदगी का फिर निशां कल तक रहे या ना रहे॥
खोलकर दिल बात कर लो ना रहें शिकवे गिले,
रिश्ते नातों का दुकां कल तक रहे या ना रहे॥
आज गर मौका मिला है कर लो रौशन ज़िंदगी,
चाँद “सूरज” कहकशां कल तक रहे या ना रहे॥