ग़ज़ल
चुपके से आती खामोशी न जाने कितना कुछ कह जाती है
हवा के झोके के संग तुम्हारी खुशबू को भी वो ले आती है
मोहब्बत का वो दर्ज़ा उसने दे दिया है मेरे नाम पर ए दोस्त
जब कोइ नहीं होता आसपास तब वो खामोशी से आती है !
ज़रूरी नहीं होता कि वो आएं तो दरवाज़ा खुला ही चाहिए
संवेदना की प्रबलता ही होती है वो अनुभूति बनकर आती है
इस ओर धरम की धजा है और उस ओर अवाम का रुख भी है
मोहब्बत के मामले में कबीर हो जाऊं कभी वो मीरां बन आती है !
बारिश बरसती है मूसलाधार तो कच्चा सोना उगलती धरती है
सूखे की मार से ये ज़मीं दरारों में बंटती हुई दिल तक आती है !
– पंकज त्रिवेदी