ग़ज़ल
2122 2122 2122 212 मात्र भर 26 यति 14,12
क्या करूँ किससे कहूँ मैं, बात कोई ख़ास है.
हर यहाँ मालिक कहे है,हर वही पर दास है.
ख्वाब में कोठी अटारी,जन्म से है अब तलक,
पर हमारे भाग में तो,झोपड़ी ही वास है.
इस ज़माने ने हमेशा, तोडना चाहा मगर,
हम भले टूटा किये पर,शेष अब भी आस है.
जिस किसी को दोस्त समझा,जान तक हाज़िर किया,
ढेर कष्टों में मगर वो,अब न मेरे पास है.
‘सहज’जब गहराइयों में,उतर कर देखा मिला,
कल तलक जो था मगन वो,आज निपट उदास है.
@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/साहित्यकार
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