ग़ज़ल:
किसने लगाई आग, और किस -किस का घर जला.
मेरे शहर के अम्न पे , कैसा क़हर क़हर चला.
क्या माज़रा है दोस्त, चलो हम पता करें,
इस बेकसूर परिंदे का, कैसे पर जला.
ए किसकी हिमाकत है, सरारत ए किसकी है,
विष घोल फजाओं में चुरा जो नज़र चला.
कुछ भेड़िये ये ग़मगीन हैं, इस ख़ास प्रश्न पर,
कैसे खुलूस -ओ- प्यार में अब तक शहर पला.
कल शाम हुए हादसों पे हो चुकी बहस,
है प्रश्न इसी दौर का आखिर किधर भला.
-डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’