ग़ज़ल
बेसबब ये अंधेरे जल क्यों रहे हैं।
शहर दोज़ख़ उजाले जल क्यों रहे हैं।
हमने तो कोई तरक़्क़ी हासिल नहीं की।
हमसे सारे के सारे जल क्यों रहे हैं।
हर तरफ़ क्यों वबा फैली इस कदर है।
शहर जुल्मो के मारे जल क्यों रहे हैं।
आख़िर उतार लाया है कहकशां कौन।
चाँद सूरज सितारे जल क्यों रहे हैं।
बन्द क्यों कर दिये है उसने मेरे होठ।
सुर्ख लब ये हमारे जल क्यों रहे है।
हमसे कोई नही जलता इस जहान में।
लोग तुमसे तुम्हारे जल क्यों रहे है ।