ग़ज़ल
हम किसी भी फैसले तक नही पहुँचे
क्योंकि तुम भी तब्सिरे तक नही पहुचे
फिर तड़प के मर गयी खामुशी साहब
हम मगर उस हादसे तक नही पहुचे
फिर किसे के हिज्र में खुदकुशी कर ले
हम अभी उस हौसले तक नही पहुँचे
जाने कितने दुख देखे हमने फिर भी देख
हम कभी तेरे. पते तक नही पहुँचे
छोड़ कर वो नक्श अपने चला आया
लोग फिर भी रास्ते तक नही पहुँचे