ग़ज़ल
विषय:- पत्थर और पानी
विधा:- ग़ज़ल
ग़ज़ल
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पत्थर और पानी तेरी अजीब कहानी रे,
इक रोके है रस्ता तो दूजा दे जिंदगानी रे।
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झर झर बहते झरने पत्थर के पहाड़ो से,
कल कल छल छल करे दरिया दिवानी रे।
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हरे भरे उपवन,है खिल खिलाते पानी से
लहलहाती कलिया लगती बड़ी सुहानी रे।
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इतना अडिग है पत्थर,पर्वतो-चट्टानो का
डरे न आंधी तुफां से ऐसी उसमे रवानी रे।
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छल,कपट छोड़ सीख ले पत्थर पानी से,
पत्थर दिल इंसान, तूं भी बन जा पानी रे।
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इतना क्या गिरना ‘जैदि’ तेरे इस ज़मीर से,
तूं शजर बन ऐसा तेरी छांव लगे सुहानी रे।
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शायर:-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राजस्थान)