‘ग़ज़ल’
‘ग़ज़ल’
बेईमानी की दौलत रखने, जो तहख़ाने जाते हैं,
फिर रातों को वो उसे लुटाने, छुपकर मयखाने जाते हैं।
चकाचौंध की चाहत में पतंगे जब, लौ से लिपटना चाहते हैं,
घूम-घूमकर डूब-डूबकर, तब जां से परवाने जाते हैं।
चलते-चलते कड़ी धूप में,जब पाँव बहुत थक जाते हैं,
जहाँ दिखी कोई छाँव घनी सी,वहीं सुस्ताने जाते हैं।
सुख में तेरा-तेरा मैं, कहता तो सारा ही जग है ,
आए जाए मुसीबत जब जीवन में, असली तब पहचाने जाते हैं।
जख़्मों की खेती करनेवाले,जब जख्मों से घिर जाते हैं,
तोबा-तोबा करके तब वो हीे,जख़्म सिलवाने जाते हैं।
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लेखिका-गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड