ग़ज़ल
ये जमीं जो एक घर है ।
हम सभी की रहगुज़र है।।
खुशनुमा इसकी सतह पर।
एक छत आकाश भर है।।
भिन्न हैं मज़हब सभी के ।
एक सबका ईश्वर है।।
जिंदगी है रेल जिसमें ।
चंद घण्टों का सफ़र है।।
सहज सबको इस जहां में।
मृत्यु का बस एक डर है।।
जगदीश शर्मा सहज
ये जमीं जो एक घर है ।
हम सभी की रहगुज़र है।।
खुशनुमा इसकी सतह पर।
एक छत आकाश भर है।।
भिन्न हैं मज़हब सभी के ।
एक सबका ईश्वर है।।
जिंदगी है रेल जिसमें ।
चंद घण्टों का सफ़र है।।
सहज सबको इस जहां में।
मृत्यु का बस एक डर है।।
जगदीश शर्मा सहज