ग़ज़ल
जो हर बात सुना करता है
मुझमें कौन रहा करता है..
उस से गर मैं मिल ना पाऊँ
शामो सहर गिला करता है..
मेरे हिस्से के सज़दे भी
वो जाने क्यूँ किया करता है..
मंजर से ओझल होकर भी
मुझसे रोज मिला करता है..
जब भी लब मुस्काते मेरे
आँखें मेरी पढ़ा करता है..
उसकी पूजा इतनी सी है
मुझको सोच लिया करता है..
सुरेखा कादियान ‘सृजना’