ग़ज़ल
झूठी राहों की मंज़िल का सच पायें तो बात बने
अपने भीतर की दुनिया में रच पायें तो बात बने
तेरी दुनिया,तेरी ताक़त तूने कब किसको बख़्शा
इक दिन तेरी मनमानी से बच पायें तो बात बने
सच है तेरी माया में मैं जाने कब से नाच रही
मेरे घुंघरू मेरी ताल पे नच पायें तो बात बने
इक दिन जब इस माटी के सारे ही रंग उतर जाएँ
उस दिन माटी ही के रंग में जच पायें तो बात बने
फँस तो गये हैं अनजाने में हम इस आवाजाही में
फिर भी इसके वहशीपन से बच पायें तो बात बने
सुरेखा कादियान ‘सृजना’