ग़ज़ल
ज़िंदगी से भी कहीं ज़्यादा मुहब्बत आपसे है
जो मिला है वो ख़ुशी वो प्यार दौलत आपसे है//1
वो दिया है आपने सोचा नहीं हमने कभी जो
ये शोहरत ये मस्तियाँ निस्बत मुरव्वत आपसे है//2
आपके बिन हाल ऐसा जो बहारों बिन चमन का
हर इनायत ज़ोर हिकमत दिल नफ़ासत आपसे है//3
हर अदावत छोड़ दी हमने तुम्हें पाकर क़सम से
इक नशा है आपका अब ये शराफ़त आपसे है//4
दौर उसरत का भुलाकर राह ज़न्नत की दिखाई
रब नहीं हो पर नहीं कम घर सलामत आपसे है//5
हर घड़ी सज़दा तुम्हें मैं रूह से करता रहूँगा
मोम हरक़त आज पत्थर की ये आदत आपसे है//6
देख ‘प्रीतम’ मैं क़रीने से ज़बर होकर रहूँ अब
चार दिन की ज़िंदगी में जोश राहत आपसे है//7
शब्दार्थ- निस्बत-संबंध, मुरव्वत-सज्जनता, इनायत-कृपा, हिक़मत-तत्त्व ज्ञान या उत्तम युक्ति,नफ़ासत-कोमलता, अदावत-शत्रुता, उसरत-कंगाली या दरिद्रता, जन्नत-स्वर्ग, सज़दा-झुककर सलाम, क़रीने-तरक़ीब,
आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल