$ग़ज़ल
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212/212/212/2
इक कली खिल रही है नज़र में
फूल बनने चली दिल नगर में//1
प्यार की बू लिए मुस्क़ुराकर
घुल रही वो असर से असर में//2
देखता हूँ जिधर वो उधर है
जीत लूँ मैं उसे हर डगर में//3
हाथ में हाथ लेकर चलें हम
ज़िंदगी के सुहाने सफ़र में//4
हम कभी रूठना भूल जाएँ
मौज़ को जीत लें हर समर में//5
मैं उसे वो मुझे यूँ समझ ले
शीप मोती बनें एक घर में//6
प्यार तो प्यार ही जानता है
जान ‘प्रीतम’ इसे हर क़दर में//7
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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