$ग़ज़ल
बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212/212/212
ज़िंदगी तब हँसाने लगी
जब समझ ख़ूब आने लगी//1
पाँव में शूल जब भी चुभा
फूल की याद छाने लगी//2
आपको देखकर यूँ लगा
ज़िंदगी गुनगुनाने लगी//3
हसरतें हो गई हैं जवां
आरज़ू गुल खिलाने लगी//4
हौसलों का सफ़र अब लगे
रूह आशा जगाने लगी//5
बात में वज़्न पैदा हुआ
जब ग़ज़ल प्रीत भाने लगी//6
रोशनी हो गई उस जगह
मुख जहाँ वो दिखाने लगी//7
गुम हुआ शौक़ में मैं कभी
हर घड़ी मुस्क़राने लगी//8
देख ‘प्रीतम’ ज़रा प्यार से
क्यों नज़र आज़माने लगी?//9
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल